पंचकर्म गायत्री एक श्रेष्ठ कर्मकांड है, इसे ब्रह्म संध्या भी कहा जाता है. किसी भी पूजन, पाठ, कवच पाठ, जप से पूर्व इसे अवश्य करना चाहिए. तत्पश्चात अन्य पुजन कार्य प्रारम्भ करना चाहिए.
1. पवित्रीकरण
बाएँ हाथ में जल लेकर उसे दाहिने हाथ से ढँक लें एवं मन्त्रोच्चारण के बाद जल को सिर तथा शरीर पर छिड़क लें।
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं सः बाह्याभयन्तर शुचिः
2. आचमन
वाणी, मन व अन्तःकरण की शुद्धि के लिए चम्मच से तीन बार जल का आचमन करें। प्रत्येक मन्त्र के साथ एक आचमन किया जाए।
ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा।ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा।ॐ सत्यं यशः श्रीर्मयि श्रीः श्रयतां स्वाहा।
3. शिखावंदन
शिखा के स्थान को स्पर्श करते हुए भावना करें कि गायत्री के इस प्रतीक के माध्यम से सदा सद्विचार ही यहाँ स्थापित रहेंगे। निम्न मन्त्र का उच्चारण करें।
ॐ चिद्रूपिणि महामाये, दिव्यतेजः समन्विते।तिष्ठ देवि शिखामध्ये, तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे॥
4. प्राणायाम
श्वास को धीमी गति से गहरी खींचकर रोकना व बाहर निकालना प्राणायाम के क्रम में आता है. श्वास खींचने के साथ भावना करें कि प्राण शक्ति, श्रेष्ठता श्वास के द्वारा अन्दर खींची जा रही है, छोड़ते समय यह भावना करें कि हमारे दुर्गुण, दुष्प्रवृत्तियाँ, बुरे विचार प्रश्वास के साथ बाहर निकल रहे हैं. प्राणायाम निम्न मन्त्र के उच्चारण के साथ किया जाए.
ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः, ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम्। ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। ॐ आपोज्योतीरसोऽमृतं, ब्रह्म भूर्भुवः स्वः ॐ।
5. न्यास
इसका प्रयोजन है-शरीर के सभी महत्त्वपूर्ण अंगों में पवित्रता का समावेश तथा. अन्तः की चेतना को जगाना ताकि देव-पूजन जैसा श्रेष्ठ कार्य किया जा सके. बाएँ हाथ की हथेली में जल लेकर दाहिने हाथ की पाँचों उँगलियों को उनमें भिगोकर बताए गए स्थान को मन्त्रोच्चार के साथ स्पर्श करें.
- ॐ वाँ मे आस्येऽस्तु (मुख को)
- ॐ नसोर्मे प्राणोऽस्तु (नासिका के दोनों छिद्रों को)
- ॐ अक्ष्णोर्मे चक्षुरस्तु (दोनों नेत्रों को)
- ॐ कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु (दोनों कानों को)
- ॐ बाह्वोर्मे बलमस्तु (दोनों भुजाओं को)
- ॐ ऊर्वोमे ओजोऽस्तु (दोनों जंघाओं को)
- ॐ अरिष्टानि मेऽंगानि, तनूस्तन्वा मे सह सन्तु (समस्त शरीर पर)
पञ्चकर्म गायत्री कृत्य संस्कार के बाद माता पृथ्वी की पूजन के बाद अपने कवच, पाठ, पूजन का संकल्प करना चाहिए. तत्पश्चात पूजन या पाठ, जाप शुरू करना चाहिए.
पृथ्वी पूजन
अपने आसन के पास पृथ्वी मात्रा को अक्षत, पुष्प और एक चम्मच जल चढ़ाकर निम्न मंत्र के साथ प्रणाम करें.
ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवी त्वम् विष्णुना धृता। त्वम् च धारय मां देवी पवित्रं कुरु चासनम्
संकल्प
आप अपने जो भी पूजा, पाठ या कवच करना चाहते है, उसके लिए आपको सर्वप्रथम संकल्प करना चाहिए और भगवन से उसकी सफलता के लिए आशीर्वाद लेनी चाहिए. इसके बाद पूजन, जप कर्म प्रारम्भ करना चाहिए.
“ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद् भगवतो महापुरूषस्य,विष्णुराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य (रात मे : अस्यां रात्र्यां कहे) ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीये परार्धे श्रीश्वेत वाराहकल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशति तमे कलियुगे कलि प्रथमचरणे भारतवर्षे भरतखण्डे जम्बूद्वीपे आर्यावर्तैक देशान्तर्गते ………… १ संवत्सरे महांमागल्यप्रद मासोतमे मासे ………. २ मासे ………… ३ पक्षे ………… ४ तिथौ …………५ वासरे ………… ६ गोत्रोत्पन्नः ………… ७ नामाऽहं ममात्मनः श्रुति स्मृति पुराणतन्त्रोक्त फलप्राप्तये ग्रहदोष, दैहिक, दैविक, भौतिक – त्रिविध ताप निवार्णार्थं सर्वारिष्ट निरसन पूर्वक सर्वपाप क्षयार्थं मनसेप्सित फल प्राप्ति पूर्वक, दीर्घायु शरीरारोग्य कामनया धन-धान्य-बल-पुष्टि-कीर्ति-यश लाभार्थं, सकल आधि, व्याधि, दोष परिहार्थं सकल मनोरथ सिध्यर्थं …………… ८ करिष्ये।”
(१ संवत्सर का नाम, २ महीने का नाम, ३ पक्ष का नाम, ४ तिथि का नाम, ५ दिन का नाम, ६ अपने गोत्र का नाम, ७ अपना नाम, ८ जो कर्म पूजा/जपादि करना हो उसका उच्चारण करे।) || Source Link ||
नोट: पूजन कर्म के दौरान शरीर, वस्त्र और स्थान की शुद्धि आवश्यक है, अन्यथा चित्त में भटकाव उत्पन्न होता है. आप उस दौरान दीप और धुप से पूजन का अनुकूल माहौल बना सकते है.
हमें आशा है कि आप इस लेख में पञ्चकर्म गायत्री कृत्य संस्कार, जो किसी भी पूजन, आराधना, पाठ और जाप से पूर्व अवश्य करना चाहिए, से लाभान्वित होंगें. यदि आप इस बारे में कुछ और जानकारी चाह रहे हों तो कमेंट के जरिए हमें अवश्य बताये. हमें आपके किसी भी प्रश्न का उत्तर देने में अत्यंत ख़ुशी होगी. आप हमारे लेख मंगलवार के दिन मंदिर से चप्पल चोरी होना शुभ है या अशुभ! जाने ज्योतिष विचार को पढ़ सकते है.
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